माधबी पुरी बुच को हिंदेनबर्ग केस में लोकपाल से क्लीन चिट | पूरी जानकारी

Madhabi Puri Buch in Hindenburg Case

हिंदेनबर्ग केस में माधबी पुरी बुच को लोकपाल ने दी क्लीन चिट। जानिए आरोपों, जांच और फैसले का पूरा विवरण। SEBI, आदानी ग्रुप और अधिक।

नमस्कार दोस्तों! आज हम एक अहम खबर पर बात करेंगे जो हाल ही में सामने आई है। ये खबर है पूर्व SEBI प्रमुख माधबी पुरी बुच के बारे में, जिनके खिलाफ हिंदेनबर्ग केस में तीन शिकायतें दर्ज थीं। लेकिन अब लोकपाल ने इन शिकायतों को खारिज करते हुए उन्हें क्लीन चिट दे दी है।

लोकपाल ने क्यों किया मामला खत्म?

लोकपाल की पूरी बेंच, जिसका नेतृत्व जस्टिस ए.एम. खानविलकर कर रहे थे, ने मामले की गहराई से जांच की। उनका मानना है कि शिकायतों में जो आरोप लगाए गए थे, वे केवल अटकलें और अनुमान थे, जिनका कोई ठोस सबूत नहीं था। इसलिए भ्रष्टाचार के कानून के तहत कोई भी जांच जरूरी नहीं थी।

इसीलिए लोकपाल ने कहा कि इन शिकायतों को खारिज कर दिया जाए।

हिंदेनबर्ग रिपोर्ट और शिकायतों का सच

शिकायतें हिंदेनबर्ग रिपोर्ट पर आधारित थीं, जो एक निवेशक की रिपोर्ट थी। ये निवेशक आदानी ग्रुप को निशाना बनाना चाहता था। लोकपाल ने कहा कि केवल इस रिपोर्ट के आधार पर किसी पर कार्रवाई करना सही नहीं होगा।

शिकायतकर्ताओं ने अलग-अलग आरोप लगाए, लेकिन लोकपाल ने उनकी जांच के बाद पाया कि वे भी कमजोर और आधारहीन हैं।

माधबी पुरी बुच पर लगे थे ये आरोप

माधबी पुरी बुच और उनके पति ने आदानी ग्रुप से जुड़े फंड में निवेश किया था, जबकि आदानी पर SEBI जांच कर रहा था।

उन्होंने अपने इस निवेश की जानकारी SEBI बोर्ड और सुप्रीम कोर्ट की समिति से छुपाई।

उनकी कंपनी AAPL और उनके पति ने महिंद्रा और ब्लैकस्टोन जैसी कंपनियों से सलाहकार फीस के रूप में पैसा लिया, जबकि ये कंपनियां SEBI की जांच में थीं।

उन्होंने एक कंपनी से किराया लेकर भी लाभ उठाया, जो वॉकरहट लिमिटेड से जुड़ी थी।

ICICI बैंक के ESOP (कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना) बेचकर भी उन्होंने लाभ कमाया, जबकि बैंक के खिलाफ SEBI की जांच थी।

कहा गया कि उन्होंने महिंद्रा और ब्लैकस्टोन के मामलों से खुद को अलग दिखाया, लेकिन अपने पद का फायदा उठाकर SEBI के अन्य सदस्यों को प्रभावित किया।

माधबी पुरी बुच ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज किया

माधबी पुरी बुच ने हर आरोप को सिरे से नकारा है। लोकपाल के इस फैसले के बाद उन्हें बड़ी राहत मिली है।

फैसला क्या सिखाता है हमें?

इस मामले से यह बात साफ होती है कि बिना ठोस सबूत के किसी पर भी आरोप लगाना गलत है। लोकपाल ने यह साबित कर दिया कि सभी जांच सही तरीके से होनी चाहिए, और केवल अनुमान या रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए।

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