AI को डांटने से मिलते हैं बेहतर जवाब? गूगल के सह-संस्थापक सर्गेई ब्रिन का बयान सुर्खियों में

टेक वर्ल्ड डेस्क, नई दिल्ली – जबसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का बोलबाला बढ़ा है, तबसे इससे जुड़ी एक से एक हैरान करने वाली बातें सामने आ रही हैं। अभी कुछ हफ्ते पहले ही OpenAI के सीईओ सैम ऑल्टमैन ने बताया था कि ChatGPT से ‘कृपया’ और ‘धन्यवाद’ जैसे शिष्ट शब्दों में बात करने पर कंपनी को बिजली के बिलों में करोड़ों का नुकसान होता है।

अब एक और बड़ा खुलासा हुआ है, और इस बार यह आया है गूगल के सह-संस्थापक सर्गेई ब्रिन की ओर से। उन्होंने हाल ही में एक पॉडकास्ट इंटरव्यू में ऐसा कुछ कह दिया, जो टेक इंडस्ट्री में चर्चा का विषय बन गया है।

ब्रिन बोले: “AI को धमकाओ, तो जवाब और सटीक आते हैं”

‘All-In’ नामक पॉडकास्ट में बातचीत के दौरान ब्रिन ने खुलकर कहा कि AI सिस्टम को जब धमकी दी जाती है, तब वो और अच्छे से काम करता है।

“ये बात आमतौर पर हम AI इंडस्ट्री में ज़्यादा शेयर नहीं करते, लेकिन सच्चाई ये है कि कई बार मॉडल्स, चाहे वो हमारे हों या किसी और के, जब उन पर दबाव होता है या उन्हें डराया-धमकाया जाता है, तो वो बेहतर परफॉर्म करते हैं।”

उन्होंने आगे हल्के-फुल्के अंदाज़ में यह भी जोड़ा कि:

“अब लोग कहेंगे कि ये अजीब बात है… लेकिन पहले लोग मज़ाक में कहते थे – अगर ठीक से काम नहीं किया तो उठा लूंगा! और AI सीरियसली ले लेता है।”

Google की Gemini AI पर जुटे ब्रिन

सर्गेई ब्रिन ने जब Google की रोज़मर्रा की जिम्मेदारियों से खुद को दूर किया था और Sundar Pichai को कमान सौंपी थी, तब माना गया कि वो अब तकनीक से दूरी बना लेंगे। लेकिन AI की तेज़ तरक्की ने उन्हें फिर से खींच लाया।

अब वे Gemini नामक Google के नए AI मॉडल को बेहतर बनाने में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं। हाल ही में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा:

“ये वक्त टेक्नोलॉजी की दुनिया का सबसे रोमांचक दौर है। आज कोई भी कंप्यूटर साइंटिस्ट अगर रिटायर हो रहा है तो वो खुद का नुकसान कर रहा है। क्योंकि आज जितना बड़ा मौका है, उतनी बड़ी चुनौती भी।”

पिछले सप्ताह Google I/O 2025 कॉन्फ्रेंस में वे Google DeepMind के सीईओ डेमिस हासाबिस के साथ मंच पर दिखाई दिए — और ये साफ हो गया कि Google अब AI की रेस में मज़बूती से वापसी कर चुका है।

शालीनता या सख़्ती – कौन तरीका है सही?

एक तरफ़ जहां AI को विनम्रता से समझाने की बात की जाती है, वहीं ब्रिन जैसे दिग्गज यह भी मानते हैं कि कभी-कभी AI को थोड़ा ‘झटका’ देना भी काम कर जाता है।

यह बात हल्के अंदाज़ में कही गई हो, लेकिन इसके पीछे एक गहरी समझ है — AI अब सिर्फ कमांड पर नहीं चलता, वो इंसानी इमोशन और व्यवहार का भी विश्लेषण करता है।

मतलब साफ है — चाहे आप प्यार से बात करें या गुस्से से, AI अब उस तरीके को पकड़ता है और उसके हिसाब से जवाब देता है।

निष्कर्ष: AI अब इंसानों जैसा सोचने लगा है?

टेक्नोलॉजी जिस तेज़ी से आगे बढ़ रही है, उसमें ये कहना ग़लत नहीं होगा कि AI केवल डेटा पर नहीं, इंसानी सोच पर भी रिएक्ट कर रहा है।

सर्गेई ब्रिन का बयान इसी तरफ़ इशारा करता है — कि आने वाला समय सिर्फ मशीनों का नहीं, बल्कि मशीनों को समझने वाले इंसानों का होगा।

AI से कैसे बात करनी है, ये अब उतना ही महत्वपूर्ण हो गया है जितना ये जानना कि उससे क्या पूछना है।

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